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इ॒ह प्र॒याण॑मस्तु वा॒मिन्द्र॑वायू वि॒मोच॑नम्। इ॒ह वां॒ सोम॑पीतये ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

iha prayāṇam astu vām indravāyū vimocanam | iha vāṁ somapītaye ||

पद पाठ

इ॒ह। प्र॒ऽयान॑म्। अ॒स्तु॒। वा॒म्। इन्द्र॑वायू॒ इति॑। वि॒ऽमोच॑नम्। इ॒ह। वा॒म्। सोम॑ऽपीतये ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:46» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:22» मन्त्र:7 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्रवायू) वायु और बिजुली के सदृश वर्त्तमान राजा और मन्त्री जनो ! जैसे (इह) इस में (वाम्) आप दोनों का (प्रयाणम्) गमन (अस्तु) हो और जैसे (इह) इस में (वाम्) आप दोनों का (सोमपीतये) सोमपान के लिये (विमोचनम्) त्याग हो, वैसे ही वायु और बिजुली वर्त्तमान हैं, ऐसा जानो ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो नित्य इधर उधर कार्य्यसिद्धि के लिय जावे और आवे उसी को राजा मानो ॥७॥ इस सूक्त में बिजुली और वायु के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥७॥ यह छियालीसवाँ सूक्त और बाईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्रवायू ! यथेह वां प्रयाणमस्तु यथेह वां सोमपीतये विमोचनमस्तु तथैव वायुविद्युतौ वर्त्तेत इति विजानीतम् ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इह) अस्मिन् (प्रयाणम्) गमनम् (अस्तु) (वाम्) युवयोः (इन्द्रवायू) वायुविद्युद्वद्वर्त्तमानौ राजाऽमात्यौ (विमोचनम्) (इह) (वाम्) युवयोः (सोमपीतये) सोमस्य पानाय ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यो नित्यमितस्ततः कार्य्यसिद्धये गच्छेदागच्छेत्तमेव राजानं मन्यध्वमिति ॥७॥ अत्रेन्द्रवायुगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥७॥ इति षट्चत्वारिंशत्तमं सूक्तं द्वाविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जो इकडे तिकडे कार्यसिद्धीसाठी जातो येतो त्यालाच राजा मानावे. ॥ ७ ॥